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आने वाली पीढ़ी के लिए साहित्य स्रजक हम

परिस्थिति का पूर्ण परिचायक है, गूढ अर्थों से सुसज्जित और परिपूर्ण रामचंद्र शुक्ल के निबंध अपनी अमिट छाप छोड़ते हैं । देवकी नन्दन खत्री की चन्द्र कान्ता सन्तति पढने का अपना ही तिलिस्म है ,रचना को पढ़ते पढ़ते वीरेंद्र सिंह के साथ पाठक भी अपने आप को तिलिस्म में पाता है। यशपाल की कहानी पर्दा पाठक को अपना अभिन्न अंग बनाए रखती है । प्रेमचंद की कहानी उपन्यास जहां पूर्णसर्वहारा के पूर्ण समाज की परिस्थतियों के परिचायक है । वहीं भीष्म साहनी की कहानियां तो पाठकों को अपने मोह पास में ऐसे बांधती हैं ,कि पात्र उनकी कहानियों के भीतर अपने आपको पाता है ,जहां अहंकार कहानी में पाठक राजा के आसपास अपने को पाता है ,वही दो गौरैया कहानी में नायक की बैठक में अपने आप को बैठा हुआ पाकर आनंदित होता है । भीष्म साहनी की प्रत्येक कहानी पाठक को अपने आप स्वयं उस कहानी का पात्र समझने में तनिक भी परहेज नहीं करती ।पाठक स्वयं अपने आप को उस कहानी का केंद्र बिंदु मानकर कहानी के मोहपास में बन्धा रहता है । 1924 मैं लिखा गया गणेश शंकर विद्यार्थी का निबंध( धर्म की आड़ )की परिस्थितियां आज भी ज्यों की त्यों है। कालजई लेखक और लेखन के लिए लेखक का पूर्ण समर्पण होना अति अनिवार्य है। मेरे श्रद्धेय सर डॉक्टर गिरजानंद त्रिगुणायत का कहना था, लेखक की तरह गंभीर पाठक होना भी, अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है । पाठक और श्रोता का आनंदित होना लेखक की पूर्ण सफलता है । एक अच्छा साहित्य भविष्य के लिए तैयार करने के लिए हमें माधुर्य पूर्ण परंपरा का एहसास अपने भीतर पैदा करना होगा ,। दूसरे लेखक के प्रति द्वेष नहीं अपितु सहयोग होना चाहिए सहयोग ऐसा जो लेखक की रचना को समझे , प्रतिक्रिया के द्वारा उचित सम्मान प्रदान करें और लेखक को एक स्वर्णिम साहित्य तैयार करने के लिए कलम को कुशलता से चलाना है अपनी रचनाओं में भावनाओं के साथ कथावस्तु को सुसज्जित करना है । लेखक को कलम को चलाना है ,ना कि किसी को पछाड़ने के लिए कलम को घिसना नहीं है

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3 Comments

Milind salve

15-Dec-2023 02:58 PM

V nice

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Varsha_Upadhyay

14-Dec-2023 11:39 PM

Nice

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Gunjan Kamal

08-Dec-2023 06:28 PM

👏👌

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